​नज़र-ए-इश्क

नजर से नजर क्या मिली; आग लगा दी,
नजरें टकराती रही; दिल जलता रहा!

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सनम हरजाई नजरों से ऐसा जाम पीला गये,
हमारै अंगअंग में पगली प्रित अगन जला गये।

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नजरें टकराई, इजाजत मिल गई,

प्यार समझा था, इबादत बन गई!

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निगाहों से ही सब कुछ कुबूल कर दिया,

जमाना जो भी समझें दिल पुकारे ‘मियां’!

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नज़रों की बात करना तो आप रहने ही दो मियां,

सारी दुनिया समझ गई, आप अभी भी नासमझ! 😋

_ आरती परीख ९.१.२०१७

5 thoughts on “​नज़र-ए-इश्क

  1. नज़रों की बात करना तो आप रहने ही दो मियां,
    सारी दुनिया समझ गई, आप अभी भी नासमझ!
    लाजवाब आरतीजी

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