ख़ामोश

खुद ही बोलते रहे..
अंत में
हमें सम्बोधित करते कहा,
“कान पक गए,
आंखों से संवाद करो!”
✍🏻 आरती परीख २६.४.२०२४

વાતનું વતેસર

પડતી મૂકતાં ન કદી ન શીખ્યાં; એ વાત,
જે વાગોળતાં; પડખાં ફેરવતાં વીતે રાત!

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ખાટીમીઠી વાતોને વાગોળવી; સારી વાત છે,
મમળાવતા રહેવું; જાત પર જ મારેલી લાત છે!

  • આરતી પરીખ ૧૩.૩.૨૦૨૪

प्रतिबिंब

पानी व वाणी
छवि खड़ी करते
चित्र चरित्र

  • आरती परीख १०.८.२०२३

ज़िंदगी

मध्यम वर्ग
जीने के चक्कर में
पिसता रहा
_ आरती परीख १७.७.२०२३

કડવો ઘૂંટ

જીવનભર
વીણી ચૂંટીને બાંધ્યો
સંસાર ભારો
અંતકાળે જણાય
બળતણે નકામો

  • આરતી પરીખ ૩.૩.૨૦૨૩

सत्तराक्षरी संवेदना

श्मशान घाट
चिताएँ जल रही
रो रहा दिल

श्मशान घाट
मोबाइल में व्यस्त
संबंधी लोग

ज्वर विह्वल
रोटी सेक रही माँ
गोद में बच्चा

कांपती जिव्हा
शिथिल अवयव
ढलती उम्र

शैल शिखर
भास्कर आगमन
स्वर्ण कलश

_ आरती परीख २५.१.२०२३
खोबर, सऊदी अरेबिया

ओंस/शबनम

तृण तृण से
ओस मोती चुराये
लुटेरी धूप

मोती सा व्हेम
दूर्वा पे बेठी ओंस
धूप पिगाले

फूल पत्तियां
निशा की आगोश में
ओंस का स्नान

चमक रहे
तृण तृण में ओस
ओस में सूर्य

तृण तृण में
लिख गई गझल
ओंस की बूंदें
✍🏻 आरती परीख २२.१.२०२३

अंतकाल

संध्या काल
धीरे धीरे
मुड रही
जीवन रेल
सूरज की तरह
ही
क्षितिज पर
ठहरने के लिए…
✍🏻 आरती परीख
१८.१.२०२३