Archive | January 9, 2017

चांदनी

​वादा करके प्यारका; 

आसानी से वो मुकर गये..

ईश्क में पिघले ऐसे;

श्वेत चांदनी जैसे,

हम चमक गये!

_आरती परीख ९.१.२०१७

आरती

​आखिरकार

वो ही झूक गये;

आशका ले गये..

निज मंदिर की

“आरती” जो हुं!

_आरती परीख ९.१.२०१७

आम आदमी

​आदमी हुं; मकान से हवेली बनाने में जुटा,

खुद की मरम्मत करने की फुरसद ही कहां?!

_ आरती परीख ९.१.२०१७

​नज़र-ए-इश्क

नजर से नजर क्या मिली; आग लगा दी,
नजरें टकराती रही; दिल जलता रहा!

~~

सनम हरजाई नजरों से ऐसा जाम पीला गये,
हमारै अंगअंग में पगली प्रित अगन जला गये।

~~

नजरें टकराई, इजाजत मिल गई,

प्यार समझा था, इबादत बन गई!

~~

निगाहों से ही सब कुछ कुबूल कर दिया,

जमाना जो भी समझें दिल पुकारे ‘मियां’!

~~

नज़रों की बात करना तो आप रहने ही दो मियां,

सारी दुनिया समझ गई, आप अभी भी नासमझ! 😋

_ आरती परीख ९.१.२०१७