Archive | January 17, 2017

हिमवर्षा

श्वेत जूगनु

डेरा जमाए बैठे

कांपती घाटी

_आरती परीख १७.१.२०१७

अगन

​बिच बाजा़र

पापी पेट के लिए

बिकने बैठी

_ आरती परीख १७.१.२०१७

बारिश

​हवा क्या रूठी

घिर आए बादल

प्यार जताने

_आरती परीख १७.१.२०१७

स्वप्निल

​अंधेरी रात

गुपचुप मिलाप

पलकों तले

_आरती परीख १७.१.२०१७

सुकून

​कोहरा तले

थकान मिटा रहा

महानगर 

_ आरती परीख १७.१.२०१७

बहुमंजिला शहर

​निगल गये,

बहुमाली भवन,

शिशिर धूप!

_ आरती परीख १७.१.२०१७