જીવનભર
વીણી ચૂંટીને બાંધ્યો
સંસાર ભારો
અંતકાળે જણાય
બળતણે નકામો
- આરતી પરીખ ૩.૩.૨૦૨૩
જીવનભર
વીણી ચૂંટીને બાંધ્યો
સંસાર ભારો
અંતકાળે જણાય
બળતણે નકામો
संध्या काल
धीरे धीरे
मुड रही
जीवन रेल
सूरज की तरह
ही
क्षितिज पर
ठहरने के लिए…
✍🏻 आरती परीख
१८.१.२०२३
सुबह चाय और शाम कॉफ़ी के साथ बिताते है,
हर एक क़रीबी रिश्ते हम बखूबी निभाते है!
✍🏻 आरती परीख २१.१२.२०२२
शब्दों से पूरा
इरादों से हो आधा
“वादा” नाम का!
✍🏻 आरती परीख १८.११.२०२२
“शाम/संध्या” विषय पर कुछ हाइकु जो मैंने लिखे है…..
बाँहें पसार
छत पर जा बैठी
शाम की धूप
—-
नीला आसमां
स्वप्निल रंग भरे
सुहानी संध्या
—-
रवि की कश्ती
समंदर में डूबी
आकाश लाल
—-
मुँडेर बैठी
अलसाई सी धूप
संध्या ठहेकी
—-
दिवस लुप्त
समुद्र में घुलती
केसरी धूप
—-
संध्या स्वरुप
नदियाँ में नहाती
फकीरी धूप
—-
लहुलुहान
आसमां की सैर में
संध्या के पैर
—-
गोता लगाये
सागर में सूरज
आसमां लाल
—-
संध्या फलक
क्षितिज के मस्तिष्क
सूर्य तिलक
—-
सूरज रथ
क्षितिज पर थमा
गोधूलि बेला
—-
सूरज ढला
आसमां में चमके
संध्या लालित्य
—-
रवि का ठेला
समंदर में गिरा
सांझ की बेला
—-
रवि का ठेला
समंदर में गीरा
ठहाके संध्या
—-
सूर्य किरणें
दुपट्टे में लपेट
ढलती सांझ
—-
बादल भोले
सुनहरी झाँकती
उषा/संध्या किरणें
—-
स्वर्णिम संध्या
अलौकिक नजारा
पर्वत कंघा
—-
दिवस लुप्त
समुद्र में घुलती
केसरी धूप
—-
शिशिर ऋतु
धूँध दुपट्टा ओढ़े-
शर्मिली संध्या
—-
कोहरा लिए-
संध्या ठुमक रही
रुठे चांदनी
—-
बिखर रही-
सूरज की किरणें
सुहानी शाम
—-
संध्या निखरी
काला रंग छिटके-
निगोडी निशा
—-
साँझ की बेला
मौसम अलबेला
मन अकेला
—-
संध्या जो ढली
चांद सितारों संग
निशा विचरे
—-
गोधूलि बेला
दृश्य है अलबेला
जीवन ठेला
—-
गोधूलि बेला
अंबर पे सजेगा
निशा का ठेला
—-
गम की शाम
समंदर में डूबी
अंधेरा छाया
—-
नीला अंबर
काला कम्बल ओढ़ें
शाम जो ढली
—-
द्वार पे खड़ी
चांद तारोंकी सेना
क्षितिज लाल
—-
लाल क्षितिज
तुफानी समंदर
सूरज डूबा
—-
शाम ढलते
समुद्र में नहाये
पथिक सूर्य
—-
सूरजदेव
भगवा लहराये
सुबह शाम
✍🏻 आरती परीख
હૈયાના હિંડોળે ઝૂલે રે મારો સાહ્યબો,
જોબનના ઉલાળે હસે રે મારો સાહ્યબો,
લહેરિયું લાલ ને ઘમ્મર વલોણી ચાલ,
નખરાળાં નયને વસે રે મારો સાહ્યબો..
✍️ આરતી પરીખ
प्यार करनेवाले कभी सोचते नहीं,
सोच सोचकर प्यार होता ही नहीं!!
सनमम हरजाई नज़रों से ऐसा जाम पीला गये,
हमारै अंगअंग में पगली प्रित अगन जला गये।
नज़रें टकराई, इजाज़त मिल गई,
प्यार समझा था, इबादत बन गई!
जबजब जो भी मीला प्यार से कबुल कीया,
बुलबुलने अपनेआप को पिंजरमें कैद कीया !!
हमारे अपने ही हमें सबसे ज्यादा सताते हैं,
पराये तो जूठा प्यार आसानी से जताते हैं!
हवा के झोंके की तरह ही हम आजाद जीव,
प्यार महोब्बत से मिलना जुलना अपनी नीव!
जबसे अपने-आप से प्यार करने लगे,
अजनबी भी प्यार से गले मिलने लगे!
✍️आरती परीख
अप्रतिम
क्षणिक मिलन
धरती अंबर का
गेरूआ छाया
क्षितिज
सायली रचना विधान
• सायली एक पाँच पंक्तियों और नौ शब्दों वाली कविता है |
• मराठी कवि विशाल इंगळे ने इस विधा को विकसित किया हैं बहुत ही कम वक्त में यह विधा मराठी काव्यजगत में लोकप्रिय हुई और कई अन्य कवियों ने भी इस तरह कि रचनायें रची
• पहली पंक्ती में एक शब्द
• दुसरी पंक्ती में दो शब्द
• तीसरी पंक्ती में तीन शब्द
• चौथी पंक्ती में दो शब्द
• पाँचवी पंक्ती में एक शब्द और
• कविता आशययुक्त हो
• इस तरह से सिर्फ नौ शब्दों में रचित पूर्ण कविता को सायली कहा जाता हैं
• यह शब्द आधारित होने के कारण अपनी तरह कि एकमेव और अनोखी विधा है |
• हिंदी में इस तरह कि रचनायें सर्वप्रथम #शिरीष_देशमुख की कविताओं में नजर आती हैं |
• सायली विधा में आप देखेगें कि #हाइकु की भांती हर लाइन अपने आप में सम्पुर्ण है |
• बातचीत अथवा दुसरी विधा की कविताओं मे जैसे लाइन होती है उस तरह से वाक्य को तोड़ कर लाइन बना देने से ही सायली नहीं होती |
कई महानुभाव सायली छंद कहते है पर सर्वमान्य नही ।
अपने भावों को शब्दों के निश्चित क्रम में प्रकट करने का माध्यम है ।
पाँच पंक्तियों में लेखन का विधान कहा जाता है।
विशेष की मात्रा एवम् वर्ण के बजाय शब्दों की सँख्या को आधार माना है।
इसके अतिरिक्त इस विधा का कोई भी और कोई व्याकरण नही है ।
अश्रु नीगल-
मुस्कुराते फिरते
जीवनभर
-आरती परीख २२.१२.२०२१
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