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કડવો ઘૂંટ

જીવનભર
વીણી ચૂંટીને બાંધ્યો
સંસાર ભારો
અંતકાળે જણાય
બળતણે નકામો

  • આરતી પરીખ ૩.૩.૨૦૨૩

अंतकाल

संध्या काल
धीरे धीरे
मुड रही
जीवन रेल
सूरज की तरह
ही
क्षितिज पर
ठहरने के लिए…
✍🏻 आरती परीख
१८.१.२०२३

પીપળો

જળ કે સ્થળ સાથે
મારે શું નિસ્બત?!

મારે તો,
બસ
મન ભરીને જીવવું છે.
.
સ્હેજ ભીનાશ મળી નથી કે,
પીપળા સમું
અકારણ જ
પાંગરવું છે…
✍️ આરતી પરીખ ૧૬.૬.૨૦૨૨

સાહ્યબો

હૈયાના હિંડોળે ઝૂલે રે મારો સાહ્યબો,
જોબનના ઉલાળે હસે રે મારો સાહ્યબો,
લહેરિયું લાલ ને ઘમ્મર વલોણી ચાલ,
નખરાળાં નયને વસે રે મારો સાહ્યબો..
✍️ આરતી પરીખ

जीवनदात्री

कौन हूं मैं?

बचपन में
भोलीभाली..
नखरेवाली..
पहाडों में
कूदती.. फिरती..
प्यारे झरनों सी….
हर ढलान पर ढल गई..
कलकल..
छलछल..
कलकल..
छलछल..
बहती रही…

युवां जो हुई..
उन्माद से
मस्त…
चट्टानों से टकराती,
बलखाती..
इठलाती..
झप्पाक…
जल प्रपात सी कूद गई..
पथ्थर चीरती..
कहीं टकराती…
तो,
चिल्लाती…
धूप में चमकती,
चांदनी रात में लुभावती…
खल-खल…
खल-खल…
बहने लगी….

प्रौढावस्था में
दो किनारों बिच
शांत…
सरिता सी,
अपनेआप को
सकुट कर
चुपचाप
बहती रही..
.
.
मुझे
कहीं बांध से बांधा गया,
तो
कहीं कूएं से सींचा गया,
.
.
हरहाल में
मिट्टी में दबे बीज को
अंकुरित करती रही..
.
.
.
तप्त रवि से त्रस्त…
खारे समंदर से उठी
भाप सी…
आकाश में उडी..
पर,
घने काले बादलों में फस गई…

दूर देशावर
अन्जान ईलाकों में
उडती.. फिरती..

नसीब से
बीच में कहीं
पहाड़ी या जंगलों से
मिल गया
जो
थोड़ा सा दुलार…
तो…….???
.

जो
ओसबूंद बनी
तो
रवि किरणों से

लुप्त हो गई।

और
अगर

कहीं
मेघबूंद सी
रेगिस्तान में गीरी
तो,
रेत में

विलीन हो गई।

मगर
खुशनसीबी से,
गांव-शहर पर
वर्षा बूंदों सी बरसी
तो,
…..
फिर क्या?!
.
फिर वो ही जीवन चक्र!
.
सारी दुनिया
अपने स्वार्थ अनुसार
मुझे
बांधने के लिए
बेचैन।
.
.
अभी भी
मैं सोचती रही…
.
और

अंतर्नाद सुनाई दिया…

इतना मत सोच
जैसी भी मीली
जितनी भी मीली…
जी भर के जी ले….

जीवनदात्री है तूं….

जीवनदात्री…..!!

_आरती परीख

आहुति

“आहुति” – क्षणिका

जगह जगह
दोचार
विचारों के चिन्गार
छोड़ आती हूं।
.
बिच बिचमें
तीखें शब्दों से
तेल के छींटे
उडा देती हूं।
.
आग
लगे न लगे
लोगों की
समझ ही जिम्मेदार!
_आरती परीख १९.१.२०२२

कोहरा

क्षणिका

हंगामा मचा दिया
सोशियल मिडिया पर..
.
कोहरे की रात
फूटपाथ पे सोये
रातभर ठिठुरते
मजदूरों की
दरिद्रता पर
लिखी कविता ने..
.
जो,
कवि ने पोस्ट कि थी..
.
स्मार्टफोन से
हिटर के सामने बैठे।
_आरती परीख २३.१२.२०२१

कवि/कवयित्री


कविता लिखी
ठिठुरते हाथों से
धूप से भरी
-आरती परीख २२.१२.२०२१

अंतिम यात्रा

उनकी
अंतिम यात्रा में
गांव गांव से
लोग उमड़ आये।
जिसका
मृत्यु हुआ था,
अकेलेपन से
तंग आकर
आत्महत्या करके…!

  • आरती परीख ११.१२.२०२१

એની
અંતિમયાત્રામાં
ગામેગામથી
લોકો ઉમટી પડ્યા.
જેનું
મૃત્યુ થયું હતું,
એકલતાથી કંટાળી
આપઘાત કરીને…!
_ આરતી પરીખ

इश्क

कोई कहो उसे,
ईतना भी
हमें याद न किया करे।
यह
हिचकियाँ
जानलेवा बनने वाली है!
– आरती परीख १८.११.२०२१