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सत्तराक्षरी संवेदना

श्मशान घाट
चिताएँ जल रही
रो रहा दिल

श्मशान घाट
मोबाइल में व्यस्त
संबंधी लोग

ज्वर विह्वल
रोटी सेक रही माँ
गोद में बच्चा

कांपती जिव्हा
शिथिल अवयव
ढलती उम्र

शैल शिखर
भास्कर आगमन
स्वर्ण कलश

_ आरती परीख २५.१.२०२३
खोबर, सऊदी अरेबिया

ओंस/शबनम

तृण तृण से
ओस मोती चुराये
लुटेरी धूप

मोती सा व्हेम
दूर्वा पे बेठी ओंस
धूप पिगाले

फूल पत्तियां
निशा की आगोश में
ओंस का स्नान

चमक रहे
तृण तृण में ओस
ओस में सूर्य

तृण तृण में
लिख गई गझल
ओंस की बूंदें
✍🏻 आरती परीख २२.१.२०२३

अंतकाल

संध्या काल
धीरे धीरे
मुड रही
जीवन रेल
सूरज की तरह
ही
क्षितिज पर
ठहरने के लिए…
✍🏻 आरती परीख
१८.१.२०२३

हवा हवाई

क़ातिल हवा

ठिठुरती धरती

शीत आंगन

~

बर्फिली हवा

पर्ण विहीन पौधे

चट्टानें चीखें

~

सर्द हवाएँ

रवि जला न सका-

धूप अँगीठी

~

चूमती फिरें-

कातिल सर्द हवा

गाल गुलाबी

~

बर्फिली हवा

इतराहट भूली

शिशिर धूप

~

कातिल हवा

बिना फूंके सिगार-

मुँह से धुआं

~

शिशिर रात

दहशत दे फिरें-

कातिल हवा

~

कातिल हवा

चकनाचूर करें-

रवि का अहं

~

आलस्य भरे-

आंगन में आ बैठा

सर्द प्रवात 

~

१०

वायव्य* हवा

ओढ सर्द चूनर

ढलती सांझ

~

११

फागुनी हवा

महक यहाँ तहाँ

मौसम जवाँ

~

१२

फागुनी हवा

रंगोत्सव का नशा

मौसम जवां

~

१३

दिशाएँ पीत

हवा गुनगुनाती

वासंती गीत

~

१४

तेज धूप में-

यार सी गले मिले

हल्की सी हवा

~

१५

हवा जो रुठी-

स्तब्ध सा रेगिस्तान

प्रस्वेद स्नान

~

१६

गर्म हवाएं

सरकाती ही रही

रेत के टीले

~

१७

तेज़ हवाएं

ढेर के ढेर हुए

रेत के टीले

~

१८

बैसाखी हवा

सहरा में सजाती

~

रेत रंगोली

१९

दाह लगाये

छज्जे पर नाचती

बैसाखी घूप

~

२०

सहरा धूप

हवा संग घुमते

रेत के टीले

~

२१

हवा घुमडी

आँखे चुराये धूप

धुंधला समाँ

~

२२

चाक पे चढ़ी

गढ़े गर्म दिवस

ज्येष्ठ कि हवा

~

२३

बूंद बूंद से

आभ धरा को चूमे

हवा जो रुठे

~

२४

मस्तानी हवा

नदियाँ हुई जवाँ

बारिश यहाँ

~

२५

पौधों के संग

मधुर नग्में गाती

पावस हवा

~

२६

निगोडी हवा

खिंच कर ले गई

काले बादल

~

२७

माँग बढाये

दवा; दवाखानों का

अषाढ़ी हवा

~

२८

उड़ा न सकी-

यादों के सूखें पत्तें

तेज हवाएं

~

२९

आक्रोशी हवा

स्थल कद बदले

रेत के टीले

~

३०

हवा का झोंका

शाखाएं झाड रही

सूखी पत्तियां

~~

* वायव्य दिशा से हवा का वेग ज्यादा होता है जो कि आपके लिए फायदेमंद भी सिद्धि हो सकता है और नुकसान दायक भी। गर्मी के दिनों में यह फायदेमंद होगा और सर्दी के दिनों में नुकसान दायक।

✍️ आरती परीख १७.१.२०२३

मन

“मन” हाइकु


तन्हा सा मन
उमड़ पड़ी यादें-
उदासी लिए


जलते रहे
मिलन की आश में-
मन दिपक


बोझिल रिश्ते
सैलाब उमड़ता
मन सागर


फडफडाती
चुलबुली ख्वाहिशें
मन पिंजर


मन हिरन
भागदौड फिरता
स्वप्निल वन


बयां करती
मन की सिलवटें
आँखों की नमी


स्मरण-पंछी
घोंसला बना बैठे
मन मुँडेर


भीगी भीगी सी
स्मरण पगडंडी
मन-जंगल


स्मरण सुर
छमकने लगते
मन नुपूर

१०
चहक रही
रंगबिरंगी यादें
मन मुँडेर

११
सरक रही
नीले ख्वाबों की कश्ती
मन सागर

१२
उछल रहा
यादों का समंदर
मन भीतर

१३
पिंजर तोड़
उडने को बैचैन
मन का पंछी

१४
शब्दों के घाव
दर्द जीवनभर
मन बावरा

१५
शब्द खामोश
छलके संवेदना
भ्रमीत मन

१६
दरिया पार
उड़ने को बेचैन
मन का पंछी

१७
नसों में दौड़े-
स्मरणीय कारवाँ
मन बावरा

१८
साजन झुले-
अखियों के झरोखें
मनवा रोये

१९
तन्हा सा मन
उमड़ पड़ी यादें-
उदासी लिए

२०
मन में कैद
गगन विहार के-
आज़ाद ख्याल

२१
भीगा बदन
बारिश की झडियाँ
सूखा मनवा

२२
बदरा छाए
कुदमकुद करें
मेंढक मन

२३
मनभावन
आंगन में नाचती
शिशिर धूप

२४
बरखा बूँदें
तालबद्ध बरसे
मनवा नाचें

२५
साँझ की बेला
मौसम अलबेला
मन अकेला

२६
खनक रहे
मन गुल्लक में ही
यादों के सिक्के

२७
शरीर लेटा
सपनें बुन चला
चंचल मन

२८
खनका रहा
अनबुने सपनें
मन गुल्लक

२९
छाया तिमिर
जलाया मनदीप
हुआ उजाला

३०
प्रीत में रत
बजे मन बांसुरी
बॉस सा जीव

३१
उखड़े मन
समझौता क्या जाने?!
उजड़े घर

३२
उडना चाहे
दूर गगन छाँव
पंछी सा मन

३३
मन मंदिर
आरती दीप जले
आलोक भरे

३४
खामोश रातें
टिमटिमाते तारें
मन लुभातें

३५
सूरज ढले
मन की आग बुज़े
चाँद निखरे

३६
अँधेरा भागा
इरादों का सूरज
मन में जागा

✍🏻 आरती परीख १४.१.२०२३

शीत ऋतु

सर्द हवाएँ
रवि जला न सका
धूप अँगीठी

  • आरती परीख ४.१.२०२३

यादें

अकेला देख
डेरा ज़माने लगें
यादों के लम्हे
✍🏻 आरती परीख २१.१२.२०२२

रिश्ते

सुबह चाय और शाम कॉफ़ी के साथ बिताते है,
हर एक क़रीबी रिश्ते हम बखूबी निभाते है!
✍🏻 आरती परीख २१.१२.२०२२

क्षितिज


संध्या फलक
क्षितिज के मस्तिष्क
सूर्य तिलक
—-

सूरज रथ
क्षितिज पर थमा
गोधूलि बेला
—-

निगल गई
क्षितिज की लालीमा
बैरन निशा
—-

क्षितिज बैठा
दिनचर्या सुनता
सूरज दादा
—-

क्षितिज लाल
तुफानी समंदर
सूरज डूबा
—-

भागता फिरे
बैठक क्षितिज पे
थका जो रवि
—-

आग का गोला
क्षितिज ने निगला
छाया अँधेरा
_ आरती परीख ६.१२.२०२२