अकेला देख
डेरा ज़माने लगें
यादों के लम्हे
✍🏻 आरती परीख २१.१२.२०२२
Archive | December 2022
रिश्ते
सुबह चाय और शाम कॉफ़ी के साथ बिताते है,
हर एक क़रीबी रिश्ते हम बखूबी निभाते है!
✍🏻 आरती परीख २१.१२.२०२२
ખંડેર
બોઝીલ યાદો
મકાન ધસી પડ્યું
ફળિયે ડૂમો
- આરતી પરીખ ૭.૧૨.૨૦૨૨
क्षितिज
१
संध्या फलक
क्षितिज के मस्तिष्क
सूर्य तिलक
—-
२
सूरज रथ
क्षितिज पर थमा
गोधूलि बेला
—-
३
निगल गई
क्षितिज की लालीमा
बैरन निशा
—-
४
क्षितिज बैठा
दिनचर्या सुनता
सूरज दादा
—-
५
क्षितिज लाल
तुफानी समंदर
सूरज डूबा
—-
६
भागता फिरे
बैठक क्षितिज पे
थका जो रवि
—-
७
आग का गोला
क्षितिज ने निगला
छाया अँधेरा
_ आरती परीख ६.१२.२०२२
सड़क
पहाड़ी देश
अंगड़ाइयाँ लेती
सड़क खड़ी
—
रण प्रदेश
थपेड़े से त्रस्त सी
सड़क लेटी
—
शहर देख
खाबड़ कूबड़ सी
सड़क दौड़ी
—
गाँव पहुँची
सड़क खो ही गई
खेतों के बीच
-आरती परीख ५.१२.२०२२
वक़्त
माता/पिता का ख़त
आंखों से छलकता
सुहाना वक़्त
—-
वक़्त बेवक़्त
जर्जरित दास्तानें
डेरा जमाये
—-
वक़्त की मार
क्षीण होती ही चली
वक़्त के साथ
—-
चुरा ले गया
काले घने से बाल
वक़्त लुटेरा
—-
स्व में ही रत
माता-पिता के लिये
कहाँ है वक़्त?!
_ आरती परीख ५.१२.२०२२