जीवनदात्री

कौन हूं मैं?

बचपन में
भोलीभाली..
नखरेवाली..
पहाडों में
कूदती.. फिरती..
प्यारे झरनों सी….
हर ढलान पर ढल गई..
कलकल..
छलछल..
कलकल..
छलछल..
बहती रही…

युवां जो हुई..
उन्माद से
मस्त…
चट्टानों से टकराती,
बलखाती..
इठलाती..
झप्पाक…
जल प्रपात सी कूद गई..
पथ्थर चीरती..
कहीं टकराती…
तो,
चिल्लाती…
धूप में चमकती,
चांदनी रात में लुभावती…
खल-खल…
खल-खल…
बहने लगी….

प्रौढावस्था में
दो किनारों बिच
शांत…
सरिता सी,
अपनेआप को
सकुट कर
चुपचाप
बहती रही..
.
.
मुझे
कहीं बांध से बांधा गया,
तो
कहीं कूएं से सींचा गया,
.
.
हरहाल में
मिट्टी में दबे बीज को
अंकुरित करती रही..
.
.
.
तप्त रवि से त्रस्त…
खारे समंदर से उठी
भाप सी…
आकाश में उडी..
पर,
घने काले बादलों में फस गई…

दूर देशावर
अन्जान ईलाकों में
उडती.. फिरती..

नसीब से
बीच में कहीं
पहाड़ी या जंगलों से
मिल गया
जो
थोड़ा सा दुलार…
तो…….???
.

जो
ओसबूंद बनी
तो
रवि किरणों से

लुप्त हो गई।

और
अगर

कहीं
मेघबूंद सी
रेगिस्तान में गीरी
तो,
रेत में

विलीन हो गई।

मगर
खुशनसीबी से,
गांव-शहर पर
वर्षा बूंदों सी बरसी
तो,
…..
फिर क्या?!
.
फिर वो ही जीवन चक्र!
.
सारी दुनिया
अपने स्वार्थ अनुसार
मुझे
बांधने के लिए
बेचैन।
.
.
अभी भी
मैं सोचती रही…
.
और

अंतर्नाद सुनाई दिया…

इतना मत सोच
जैसी भी मीली
जितनी भी मीली…
जी भर के जी ले….

जीवनदात्री है तूं….

जीवनदात्री…..!!

_आरती परीख

One thought on “जीवनदात्री

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s