महक उठें
पहली बारिश में
धरती मैया
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शांत हो चुका
सूरज का प्रकोप
मेह मल्हार
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नभ को चीर
धरती में समाई
दामिनीराणी
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मेह बरसा
नीली चादर तले
धरती सोयी
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बूंद बूंद से
आभ धरा को चूमे
हवा जो रुठे
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बादल टोली
भरने को आतुर
धराकी झोली
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धरा गगन
भीगी भीगी गुफ्तगू
तृण सर्जन
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डाल-डाल मैं
जल मोती पिरोये
बरखा रानी
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चूल्हे में पानी
फर्श पे बरतन
छत टपके
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मस्तानी हवा
नदियाँ हुई जवाँ
बारिश यहाँ
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बरखा बूँदें
तालबद्ध बरसे
मनवा नाचें
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बरस गई
बचपनकी यादें
बरखा संग
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भीगा भीगा सा
मन आँगन घर
वर्षाजल से
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महक उठी
बरखा रानी संग
यादें सुहानी
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बदरा छाए
कुदमकुद करें
मेंढक मन
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सरक गई
पहली बारिश से
सहरा रेत
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सूखी डालियाँ
मेघराज पिरोये
वर्षा के मोती
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बारिश थमी
भीगी सी धरती को
धूप चूंबन
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मेघ तांडव
गांव गांव बिछड़े
हाईवे तूटे
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मेघ सवारी
लूकाछूपी खेलती
धूप गौरैया
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नभ के द्वार
दामिनी के दस्तक
मेघ मल्हार
©आरती परीख
Archive | August 17, 2018
श्रावण
कतार लगी
त्योहार पे त्योहार
श्रावण माह
~~
श्रावणी वर्षा
हरी भरी चूनर
शोभित धरा
©आरती परीख