Archive | May 2018

रिश्ते नाते

नसीबवर
लम्हें बांटते फिरे
अमीर रिश्ते
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जीवन थाल
रिश्ते तोड़े सँवारे
शब्द जायका
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सुकून छिने
इर्द-गिर्द घूमते
खोखले रिश्ते
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बोझिल रिश्ते
सैलाब उमड़ता
मन सागर
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कंक्रीट वन
हरियाली निगले
रिश्ते बिछड़े
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रिश्तें-नातें
तोडने में माहिर
गिला-शिकवाँ
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भीड ही भीड
भिड गए रिश्ते भी
अकेली जान

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जीवन रेल
जुड़ते या छूटते
दिलेरी रिश्ते
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छूटे न तूटे
अजीब कश्मकश
लहू के रिश्ते
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रिश्ते चहके
ठंडी गर्म महकें
काफ़ेटेरिया
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जिंदा रखती
बोलती शिकायतें
दिल के रिश्ते
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जुड़ के रखें
अनगिनत रिश्ते
मीठे दो बोल

©आरती परीख

धूप


कभी तपना
कभी है ठिठुरना
कैसी है धूप?!
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कूकड कूक
सूरज सुलगाये
धूप अँगीठी
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मुर्गेकी बांग
आँगन में नाचती
कोमल धूप
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झूला झूलती
आंगन में कूदती
मासुम धूप
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पत्तियाँ संग
लूका छुपी खेलती
मुग्धम धूप
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फूल-पत्तियाँ
छूप्पाछूप्पी में मस्त
धूप के संग
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धूप चूनर
सूरज पहनावे
धरती तप्त
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ग्रीष्म की धूप
आंगन में नाचते
आग के गोले
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मुरझाई सी
फूल पत्तियां शाखा
धूप लहर
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१०
दाह लगाये
आंगन में रेंगती
ज्येष्ठ की घूप
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११
सहरा धूप
हवा संग घुमते
रेत के टीले
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१२
सहरा धूप
दौड़ते मृगजल
निर्जल धरा
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१३
कड़क धूप
बहुमज़ि भवन
चिपक खड़े
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१४
निगोडी धूप
झाड पर जा बैठी
नीचे में खड़ी
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१५
सूर्य किरणें
हर पल बदले
धूप रंगोली
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१६
उषा किरणें
पेड़ संग रचाते
धूप रंगोली
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१७
मनमोहक
धूप-छांव रंगोली
पेड़-पौधोंकी
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१८
पत्तों पे बैठी
अंग मरोड़ रही
सुहानी धूप
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१९
तृण तृण से
ओस मोती चुराये
लुटेरी धूप
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२०
निगल गई
भीगी सी ओंस बूंदें
धूप सवारी
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२१
हवा घुमडी
आँखे चुराये धूप
धुंधला समाँ
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२२
रेत थपेडा
पत्तियां पर बैठी
धूप चुराये
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२३
सूरज थका
धूप गठरी बांधे
निशा मुस्काय
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२४
शीत लहर
सूरज सुलगाए
धूप अंगीठी
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२५
शीत लहर
पौधों पर नाचती
कच्ची सी धूप
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२६
मनभावन
आंगन में नाचती
शिशिर धूप
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२७
शीत ॠतु में
सबकी पहली चाह
धूप चादर
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२८
नदियाँ नाली
धूप चूनर ओढे
अँगडाई ले
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२९
नाचती फिरे
गिलहरीयाँ संग
शिशिर धूप
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३०
शिशिर धूप
शीत लहरों संग
रेत में खेले
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३१
निगल गये
बहुमाली भवन
शिशिर धूप
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३२
शिशिर धूप
नदियाँ में न्हान
आरती दीप
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३३
कातिल हवा
काँपे गाँव-शहर
धूप ही दवा
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३४
तन को प्यारी
आँगन में खेलती
जाड़ें की धूप
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३५
सुबह प्यारी
कोहरे की सवारी
धूप पे भारी
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३६
कोहरा छाया
खतम होता दिखा
धूप खजाना
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३७
धूप सवारी
खेत पर्बत गाँव
कोहरा भागा
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३८
बर्फिली हवा
इतराहट भूली
शिशिर धूप
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३९
धूप के गाँव
लड़खड़ाते हुए
शीत के पाँव
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४०
पेड़पौधों पे
शीत मारता चाँटे
धूप ममता
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४१
धूप सवारी
छूमंतर हो गई
गुलाबी ठंड
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४२
बसंत रुप
फूलों पर नाचती
मृदु सी धूप
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४३
माघ की धूप
संदूक में जा छिपे
ऊनी कपड़े
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४४
मेघ सवारी
लूकाछूपी खेलती
धूप गौरैया
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४५
निगल गई
सुनहरी वो धूप
सावन ऋतु
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४६
बारिश थमी
भीगी सी धरती को
धूप चूंबन
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४७
मुँडेर बैठी
अलसाई सी धूप
संध्या ठहेकी
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४८
दिवस लुप्त
समुद्र में घुलती
केसरी धूप
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४९
संध्या स्वरुप
नदियाँ में नहाती
फकीरी धूप
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५०
धूप में खड़े
ओक्सिजन बांटते
ये पेड़-पौधें
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५१
मोती सा व्हेम
दूर्वा पे बेठी ओंस
धूप पिगाले
©आरती परीख २४.५.२०१८

धूप

दाह लगाये
आंगन में रेंगती
ज्येष्ठ की घूप
©आरती परीख २४.५.२०१६

અસ્તિત્વ

ઘરમાં અરસપરસથી હુંફાળો એક ખૂણો હોય,
જ્યાં હોવાપણાનો અહેસાસ સદાય કૂણો હોય!
©આરતી પરીખ ૨૨.૫.૨૦૧૮

મોહમાયા

વૃક્ષોએ જેને વસંતના મોહમાં ખેરવી નાખ્યાં,
એ જ પાંદડાંથી પંખીએ ડાળે માળા બાંધ્યા!
©આરતી પરીખ ૨૨.૫.૨૦૧૮

ख्वाब

उनके ख्वाब देखें तो भी हम कैसे देखें?
वो जाते वक्त हमारी नींद ही चुरा ले गए!
©आरती परीख १५.५.२०१८

વિરોધી

નક્કર
સફળતા
પાછળ
કારણભૂત
કટ્ટર
વિરોધ…!
©આરતી પરીખ ૧૫.૫.૨૦૧૮

વૃદ્ધાશ્રમ

સમજણના અભાવે મતભેદ મનભેદમાં પરિણમ્યો,
એમાં જ તો; વડિલોને ઘરડાં ઘરનો આશરો ગમ્યો.
©આરતી પરીખ ૧૬.૫.૨૦૧૮

મિલન આશ

શોધતી રહી
મિલનની શક્યતા
શબ્દોની વચ્ચે
©આરતી પરીખ ૧૫.૫.૨૦૧૮