Archive | April 25, 2018

पीले सूखे पत्ते

बगीचे की सफाई करते हुए,
महसूस किया कि
पतझड़ की वजह से
बहुत पीले पत्ते दिखाई दे रहे हैं।
जो हरे-भरे पेड़ों में
अजीब दिखाई देते थे।
मैं पौधों से चुन चुनकर
पीले पत्ते तोड़कर
गार्बेज बेग में इकठ्ठा करने लगी।
.
.
रिक्लाईनर सोफ़े पर बैठे
सास खिड़की से झांक रही थी।
उनकी आंखों में
अजीब सी नमी देखी,
मैं कुछ समझ न पाई।
.
.
हमारा शहर रेगिस्तान में है।
आज मौसम खराब है।
तेज़ हवा
रेत का तुफान
पुरा हफ्ता ऐसा ही…
मौसम खराब रहने वाला है।
.
.
“तुफानी रेतीली हवा
बगीचे को नष्ट कर देगी।”
_ सोचते हुए मैं
मास्क लगाकर
पीले पत्ते भरी गार्बेज बेग उठाकर
तुरंत ही
बगीचे की मिट्टी के उपर
पीले सूखे पत्ते बिछाने लगी।
.
.
सास आज भी मुझे देख रही थी।
“बहु बिमार न हो जाएं”
_चिंता में बैठी थी।
.
.
कामकाज निपटाने के बाद
सुकून भरी सांसें लेते हुए मैं बोली,
“माताजी, देखना ये पीले पत्ते ही
आंधी-तूफान में,
अपने बगीचे को महफूज़ रखेंगे।”
.
.
सास की आंखों में
मैंने फिर से नमी देखी,
लेकिन
आज वो हर्ष के अश्रु थे।
©आरती परीख २५.४.२०१८

जिंदादिल

कभी तो
मौत के सामने हारना ही है।
तो चलो…
आज,
जिंदगी से जीतना सिखते है।
©आरती परीख २५.४.२०१८

सरल

खुद को मजबूत बना दिया,
अब आसान लगे जिंदगी!
©आरती परीख २५.४.२०१८

अहं

ठुकराया था
सस्ते समझकर
वहीं रिश्तों से
महंगे से सबक
पाये है जिंदगी में!
©आरती परीख २५.४.२०१८