Archive | November 20, 2017

दिवार

गिला, शिकवा, नफरतकी दिवारें गिरा दी,

अब हर कोई मेरा अपना सा लगने लगा!

© आरती परीख २०.११.२०१७

सफलता

कौन अपना, कौन पराया?”

_समझने में सफल हुए

जब, 

जीवन के एक मौड़ पर

असफल हुए!

© आरती परीख २०.११.२०१७

सत्य

हवाओं का जोर बढ़ने लगा है,

डर कैसा? सच्चाई से वफ़ा है!

© आरती परीख

मिलन

साकी; ऐसा जाम पिला दे,

 खुद को ख़ुदा से मिला दे!

© आरती परीख

अश्रु

सूखने न दे-

हरे-भरे सपने

आंखोंकी नमी

© आरती परीख

कटुसत्य

हरे-भरे मकान में सूखाग्रस्त दिल रहता है,

“वृद्धाश्रम” उनके मां-बापका घर कहलाता है!

© आरती परीख

शिशिर धूप

निगल गई

भीगी सी ओंस बूंदें

धूप सवारी

© आरती परीख