Archive | November 17, 2017

दो गज ज़मीन

सब-कुछ होते हुए भी आये दिन रोना-धोना है,

बोस,अंत में तो दो गज ज़मीन पर ही सोना है!

© आरती परीख १७.११.२०१७

सितारा

पूर्णिमाकी रात तो हर कोई टहलता हैं,

अंधेरी रात में ही सितारा चमकता हैं!

© आरती परीख

स्वभावगत

ये लालच कभी खींच कर बांधने से भी बंधी नहीं,

संतोषने अपनेआप ही अपनी सीमा तय कर दी!

© आरती परीख