Archive | May 30, 2017

​यादें

खिलखिलाती

कलियाँ ये वादियाँ

प्यारी यादों में

चुगने आते

हमारी तन्हाईयाँ

यादोंके पंछी

जाड़े की रात

गर्माहट भरता

याद कम्बल

होता ही चला

दैनंदिन तीक्ष्ण

यादों का शस्त्र

अमर यादें

तरो-ताजा ही रखें

सूखा गुलाब


उड़ा न सकी 

यादों के सूखें पत्तें 

तेज हवाएं 

जवान यादें

मजबूत सहारा

बूढ़ी हो जान

संभाले हुए

पलकें बिछा कर

यादों के मोती

अँधेरी रात,

टमटमाने लगे,

यादों के दीप

तुलसी क्यारी

मुरझाई हुई सी

मां की याद में

खनक रहे

मन गुल्लक में ही

यादों के सिक्के

सूखा गुलाब

तरो-ताजा रखेगा

हमारी यादें


© आरती परीख ३०.५.२०१७

शून्य

पीछे खड़े सबका मूल बढ़ाते रहे,

अंत में तो शून्य के शून्य ही रहे।

© आरती परीख ३०.५.२०१७