पासवर्ड है
जियो और जीने दो
जी लो जिंदगी
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संभाले हुए
पलकें बिछा कर
यादों के मोती
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गिराती रही
बे-लगाम ज़ुबान
बोल का मोल
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दाह लगाये
छज्जे पर नाचती
बैसाखी घूप
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बैसाखी हवा
सहरा में सजाती
रेत रंगोली
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तेज़ हवाएं
ढेर के ढेर हुए
रेत के टीले
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संध्या जो ढली
चांद सितारों संग
निशा विचरे
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गोधूलि बेला
दृश्य है अलबेला
जीवन ठेला
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गोधूलि बेला
अंबर पे सजेगा
निशा का ठेला
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शीतल धात्री
चांद सितारे यात्री
पुर्णिमा रात्री
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रूठ के बैठे
चांद और सितारें
मावस रात
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ख़ाक हो जात
जुगनू थे तैनात
चमके रात
© आरती परीख २४.५.२०१७