Archive | May 2017

સંસ્મરણો

​ગીતમાં ગૂંથ્યા

મહેફિલ ગજવે

નિજ સ્મરણો

© આરતી પરીખ ૩૧.૫.૨૦૧૭

​यादें

खिलखिलाती

कलियाँ ये वादियाँ

प्यारी यादों में

चुगने आते

हमारी तन्हाईयाँ

यादोंके पंछी

जाड़े की रात

गर्माहट भरता

याद कम्बल

होता ही चला

दैनंदिन तीक्ष्ण

यादों का शस्त्र

अमर यादें

तरो-ताजा ही रखें

सूखा गुलाब


उड़ा न सकी 

यादों के सूखें पत्तें 

तेज हवाएं 

जवान यादें

मजबूत सहारा

बूढ़ी हो जान

संभाले हुए

पलकें बिछा कर

यादों के मोती

अँधेरी रात,

टमटमाने लगे,

यादों के दीप

तुलसी क्यारी

मुरझाई हुई सी

मां की याद में

खनक रहे

मन गुल्लक में ही

यादों के सिक्के

सूखा गुलाब

तरो-ताजा रखेगा

हमारी यादें


© आरती परीख ३०.५.२०१७

शून्य

पीछे खड़े सबका मूल बढ़ाते रहे,

अंत में तो शून्य के शून्य ही रहे।

© आरती परीख ३०.५.२०१७

परिश्रम

जब से आंखोंने ख्वाहिशों​को पनाह दी,

हमने प्रयत्नोंकी ऊंचाई थोड़ी बढ़ा दी!

© आरती परीख २९.५.२०१७

होंसला

खुद को ही अपना हमसफर मान लिया,

होंसला न हारेंगे ईश्वरने भी जान लिया!

© आरती परीख २६.५.२०१७

नगर

​रात या दिन

संघर्ष से जूझता

महानगर

© आरती परीख २५.५.२०१७

भूख

दीन का पेट

अमीर की ख्वाहिश

भूखे ही मिले

© आरती परीख २५.५.२०१७

प्रभात

कूकड कूक

सूरज सुलगाये

धूप अँगीठी

© आरती परीख २५.५.२०१७

मुर्गे की बांग

आँगन में नाचती

कोमल धूप 

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भोर की बेला

अंबर में घुमेगा

सूरज छैला

© आरती परीख २५.५.२०१७

नशा-ए-जिंदगी

​ठोकर खा खा कर होंसला बढ़ा,

अब जीने का असली नशा चढ़ा!

© आरती परीख २५.५.२०१७

हाइकु माला

​पासवर्ड है

जियो और जीने दो

जी लो जिंदगी

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संभाले हुए

पलकें बिछा कर

यादों के मोती

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गिराती रही

बे-लगाम ज़ुबान

बोल का मोल

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दाह लगाये

छज्जे पर नाचती

बैसाखी घूप

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बैसाखी हवा

सहरा में सजाती

रेत रंगोली

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तेज़ हवाएं

ढेर के ढेर हुए

रेत के टीले

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संध्या जो ढली

चांद सितारों संग

निशा विचरे

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गोधूलि बेला

दृश्य है अलबेला

जीवन ठेला

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गोधूलि बेला

अंबर पे सजेगा

निशा का ठेला

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शीतल धात्री

चांद सितारे यात्री

पुर्णिमा रात्री

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रूठ के बैठे

चांद और सितारें 

मावस रात

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ख़ाक हो जात

जुगनू थे तैनात

चमके रात

© आरती परीख २४.५.२०१७