Archive | April 2017

લલકાર

લાંબાં ટૂંકાં થૈ

સૂર્યને લલકારે

આ પડછાયા

~ આરતી પરીખ ૩૦.૪.૨૦૧૭

ઊનાળો

હિલોળા લે’તો

વૈશાખી આ વાયરો

ડાળેડાળમાં

~ આરતી પરીખ ૨૭.૪.૨૦૧૭

संवाद

खुद ही बोलते रहे..

अंत में

हमें कहे,

“कान पक गए

आंखों से संवाद करो!”

_ आरती परीख २६.४.२०१७ 

अदा

आराम फरमानेकी एक खास अदा होती है,

वरना; ये सारी दुनिया हमसे खफा होती है!

_ आरती परीख २६.४.२०१७

गिला शिकवा

बिछड़े कैसे?!

मिलन की तलप

बढाते गए

गिला शिकवा

लड़ाई झगड़ा..!!

_ आरती परीख २६.४.२०१७

वजुद

हवा के झोंके से

जो अपनों से

बिछड़ गए

हमनें

जरा सी पनाह दी

उन्होंने तो

अपने वजुद से

आशियाना महेंका दिया….

_ आरती परीख २४.४.२०१७

(पैड से गिरे फुल)

વૈશાખ

ચાંદની રાત 

વૈશાખી આ વાયરે-

ધગતી ધરા

~ આરતી પરીખ ૨૧.૪.૨૦૧૭

दिखावा

बदले हुए जमाने की फरियाद करे तो भी कैसे करें?!

दिखावे के जोश में हमने ही बच्चों कों गेजेट थमा दिए!

_ आरती परीख २१.४.२०१७

ધરતીમૈયા

શું ગજું કે આકાશના ભાગ પાડું,

ધરા મારી મા, એના ચીર શે’ ફાડું?!

– આરતી પરીખ ૨૦.૪.૨૦૧૭

हौसला

आगबबूला सूरज

जला न सका

आसमान छूने को बेकरार

पंछी का

तिनकु सा साया…!

_ आरती परीख ८.४.२०१७