Archive | November 6, 2016

वक्त-बवक्त

​एक वक्त था; दो पल भी कटते नहीं थे आप के बीना,

अब तो; सारी उम्र काटनी है आपकी याद के सहारे!

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आप क्या चल बसे; सब रीश्तेदार बोले,’बँटवारा करो..’,

अब भला हम कैसै बताये; आपकी खुश्बु ही, हमारी जागीर!

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गाँवमें अंधेरा होते ही; तेरा चहेरा चमकता था,

अब; शहरकी रोशनीमें तेरी यादें झगमगती है!

_ ©आरती परीख ६.११.२०१६